Monday, 1 June 2020

आरएसएस एवं ब्राह्मणो का अनुभव

मैं बचपन में #आरएसएस की शाखा में नित्य जाता था।संघ के शाखा में पहले चड्डी पहनकर जाना पड़ता था।

संघ स्वयंसेवक नरहरी नारायण भिड़े रचित 

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमसुखं वर्धितोऽहम् 

महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।।

यह संघ की प्रार्थना आज भी याद है।

हमसे काफी छोटा ब्राम्हण लड़का संघ की शाखा लगाता था।
उसे हमें जी पड़ता था। हमें उस समय कोई जानकारी नहीं थी। यैसा यह लोग क्यों करते थे ? आज उसी छोटे लड़के को देखता हूं एक बड़ा भाजप का राजनेता बना है। उसका नाम लेना उचित नहीं है। पहले हमने ही उसे जी लगाकर बड़ा किया और आज नाम लेकर क्यों बड़ा करें।
 
संघ के प्रशिक्षण शिविर भी किया हूँ। हिंदुस्तान हमारा है, हिंदू हिंदू हिंदुस्तान,भाड़ में जाये पाकिस्तान का बौद्धिक दृष्टिकोण हमें वहाँ मिलता था।

अब मैं 10 वी कक्षा में गया था। बचपन से ब्राह्मणो के यानी संघियों के स्कूल में ही पढ़ा था। मगर मेरी प्रायमरी शिक्षा मारवाड़ी के स्कूल में हुवी। 

वहां इंग्लिश मीडियम में मेरा पहली कक्षा से चवथी कक्षा तक पहला नंबर आता था।पिताजी क्लर्क थे। हम दो भाई एक बहन कि उस समय के महंगाई में उस इंग्लिश मीडियम में शिक्षा करना मुश्किल हो गया था। हम स्कूल में सायकल रिक्शा से जाते थे, पिताजी को उसके महीने के 70 रु देना भी कठिन हो गया था। उनकी तनख्वाह उस समय बहोत कम थी।

मुझे और छोटी बहन को ब्राह्मणो की स्कूल यानी मराठी मीडियम में डाल दिया। मेरा ब्राह्मणो के स्कूल के 5 वी (A और B) दोनों सेक्शन में पहला नंबर आना शुरू हो गया। ब्राह्मणो के बच्चे भी साथ में पढ़ते थे। 

बाहर के स्कूल से आने के वजह से 5 वी कक्षा में B Section में लिया था। 6 वी कक्षा में A Section में लिया। जैसे परीक्षा होती गई। ब्राम्हण शिक्षकों ने मेरे नंबर दबाना शुरू किया। एकदम 21 वे नंबर पर चला गया। यह सिलसिला 9 वी कक्षा तक चलते गया। 

तारे जमीन पर फ़िल्म में जैसा वह ईशान नाम का बच्चा अपने माँ-बाप से दूर दूर कैसे जाता है, वह एक ड्राइंग निकाल कर उसके टीचर अमीर खान को दिखाता है, उसी तरह मुझे नंबर में दूर फेकना शुरू था।

जब  10 वी की बोर्ड की परीक्षा हुवी तब ब्राह्मणो के लड़कों के साथ मार्क मिले। बोर्ड परीक्षा के पेपर अलग शिक्षकों के पास में जांचने के नतीजे सामने आए।

जब 10 वी कक्षा में था, उस समय एक प्रसंग हुवा। उस प्रसंग ने मेरे जीवन की दीक्षा कुछ हद तक बदल दिया था।

हर कक्षा में विद्यार्थियों के गुट होते थे। हमारे गुट में होशियार, सुंदर लड़कियां, एस. सी., एस. टी.,ओबीसी के लड़के और 2 ब्राह्मणो के लड़के थे। तो दो बहुजन विद्यार्थियों को हमारी यह दोस्ती रास नहीं आ रही थी। 

एक दिन उन दोनों ने एक षड्यंत्र रचा और उन लड़कियों को हमारे नाम से love letter उनके स्कूल बैग में डाल दिया। लड़कियों को दिखा वह रोते रोते क्लास टीचर के पास गई।

हेडमास्टर ने हमें उनके चेम्बर में बुलाया। हेडमास्टर भी ब्राम्हण था। शनिवार की सुबह की स्कूल थी। ठंडी का मौसम था। हेडमास्टर के हाथ में छड़ी (स्केल) थी। सब विद्यार्थियों को दोनों हाथों पर 5/5 छड़िया मिल रही थी। 

जब दो ब्राम्हण विद्यार्थियों का समय आया तो वह ब्राम्हण हेडमास्टर ने उन दो ब्राम्हण मित्रों को कहा,आप दोनों से यह उम्मीद नहीं थी।उनको 2/2 छड़िया देकर कक्षा में भेज दिया।

हम SC, ST, OBC के बाकी मित्र वहीं खड़े थे। मैंने उस समय के बालमन खत्म होकर युवा अवस्था में जाने वाले मन ने सोचा कि हम SC, ST, OBC के लोग गुनहगार जमात के लोग हैं। हमसे ही यह गुनाह करने की उमीद थी।

अब यह बच्चा इंटर कॉलेज होकर सीनियर कॉलेज में पढ़ने लगा। हमें ABVP के ब्राम्हण-बनिया कार्यकर्ताओं ने घेर रखा था। मुंबई में 7 सितंबर 1995 को एक बडी रैली ABVP की थी। सब हमारे विद्यार्थियों ने तय किया कि मोर्चे में जाना है। 

उस समय अचलपुर तहसील में रहता था। मुंबई की ट्रेनें बडनेरा(अमरावती) से ही जाती थी। हमें ट्रकों में लाद कर जैसे जानवर हो वैसे बडनेरा रेल्वे स्टेशन पर छोड़ दिया।

मुझे लगा ज्यो ब्राम्हण और वैश्यों के लड़के थे, वह साथ में होंगे।वह कहीं पर दिखाई नहीं दे रहे थे। मुझे लगा, हो सकता है भीड़ के वजह से नहीं दिखाई नहीं देते होंगे।मुंबई के V.T.
पुराना नाम (छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस CSMT) पर पहुंचने के बाद भी ब्राम्हण- वैश्य के ABVP के कार्यकर्ता नहीं दिखाई देते थे।

बड़ा मार्च निकला था। मार्च में नारे थे, शरद पवार करतात काय ? पैसे खातात दुसरे काय ? ( शरद पवार करते क्या ? पैसे खाते हैं दूसरा क्या ?)

उस समय जातीय अस्मिता थी,आज भी है थोड़ी मगर बहुजन समाज में जोड़ने के लिए बचाकर रखी। 

अपने ही आदमी के विरोध में हमसे ब्राम्हण नारे लगवा रहा हैं। और ब्राम्हण-वैश्यों के कार्यकर्ता मोर्चे में न आकर तुम लड़ो हम कपड़े संभालते ही नहीं हम मैदान से भाग जाते हैं।इस रणनीति पर काम कर रहे थे।

उसके बाद संघ,ABVP, BJP को कभी के पास नहीं गया।अभी भी ब्राह्मणो के टुकड़ों पर जी रहे कुछ SC, ST, OBC...मरो सालों वहाँ!

यह संघ की जानकारी क्यों दिया हूँ, आज के संघी कहते हैं, की आप कभी संघ में आवो। जानकारी प्राप्त होंगी की संघ में कोई भेदभाव होता ही नहीं। उनके लिए यह तमाचा मारते रहता हूँ।

Friday, 22 May 2020

आस्ट्रेलिया के मूलनिवासी बच्चों दर्दनाक कहानी


आस्ट्रेलिया में यूरोपियन विदेशी 1788 में बस गए थे।

विदेशी आस्ट्रेलियाई लोगों के बसने के पहले वहां के एबोरिजिनल और टॉरेस स्ट्रेट,आईलैंडर मूलनिवासी लगभग 49,000 साल पहले के हैं, इसका सबूत फ्लिंडर्स रेंजरों में पुरातत्वविदों द्वारा 125,000 साल पहले की संभावित सीम के साथ खोजा गया था।

वहां के मूलनिवासीयों की संख्या अनुमानित 5 लाख थी। चेचक, खसरा और तपेदिक जैसी यूरोपीय बीमारियों से होने वाली मौतों के तत्काल परिणाम सामने आए हैं।

आज वैश्विक कोरोना बीमारी विदेशी लोगों ने भारत में लाई गई है। यहां के मूलनिवासी को मारने का षड्यंत्र चल रहा है।

आस्ट्रेलिया में इसी कारण वहां के मूलनिवासी कोई अलग है। यह जानकारी यूरोपीय विदेशियों को मिल गई। उनके अस्तित्व पर धोका होने लगा तो उन मूलनिवासी लोगों के बच्चे चाइल्ड रिमूवल पॉलिसी ने 1869 से चुराने लगे। ताकि उनकी आबादी ना बढ़ सके।

1900 तक नाटकीय रूप से
मूलनिवासी की आबादी 93,000 तक गिर गई थी।इस नीति से भावनात्मक प्रतिशोध मूलनिवासी माता-पिता और बच्चों में होने लगा था।

1869 का विक्टोरियन आदिवासी संरक्षण अधिनियम माता-पिता से घृणा को दूर करने के लिए सबसे पहला कानून बनाया गया। वर्ष 1969 तक फिर भी 25 हजार बच्चे चोरी हो गए थे।

2007 में ऑस्ट्रेलिया में केविन रुड प्रधानमंत्री बनने के बाद स्टोल जनरेशन (चोरी की पीढ़ी) की राष्ट्रीय जांच हुवी। एक रिपोर्ट ने सिफारिश की कि प्रधान मंत्री मूलनिवासी लोगों से अपनी पीड़ा के लिए माफी मांगें।

2008 में केविन रुडने उन मूलनिवासी के स्टोल जनरेशन की माफी मांगी और उन मूलनिवासीयों के क्लोजिंग द गैप नामक एक सरकारी कार्यक्रम बाल मृत्यु दर कम करने,आदिवासी समुदाय के  रोजगार, शिक्षा और आदिवासी लोगों को विकास के प्रवाह लाने की कोशिश जारी है।

विदेशी यूरेशियन की पोलखोल